Sunday 15 August 2010

हकीकत

जिंदगी यूँ ही बेकार हो गई , सत्य की ठोकर लगी तो पाया कुछ नहीं , हवा का रुख देखकर अब जिंदगी को जी, क्योकि रुख बदलती आंधियो पर तेरा बस नहीं दोष ओरों के सर पर दे रहे हो आप , घाव अपनों के कभी सीभी सके हो क्या , भावनाएं उनकी समझ भी सके कभी, आंसुओ के मोती पी भी सके हो क्या, शराफत के तराजू में तोलो खुद को देख लो , हवा का रुख देखकर जी भी सके हो क्या

3 comments:

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  2. ammazing thoughts..in fact i couldn`t imagine this hight of thought from u.. keep it up..
    its really fantastic.

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  3. Waiting for something new.........

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